।। साहस
और प्रण ।।
हिंदी विभाग,
अल बरकात पब्लिक
स्कूल, अलीगढ
एक चिड़िया
सागर किनारे एक पेड़ पर रहती थी। उसके दो छोटे -छोटे बच्चे थे, चिड़िया
दाना लेने जाती और आकर अपने बच्चो के मुँह मे डालती । बस ऐसे ही मजे से दिन गुजर रहे
थे। एक दिन चिड़िया दाना लेने गई हुई थी, पीछे से
सागर को शरारत सूझी उसने अपनी लहरें बढाकर, दोनो
बच्चो को अपने में समा लिया । चिड़िया वापस आयी तब अपने घोंसले के पास लहरो के निशान
देख समझ गई कि उसके बच्चे समुद्र निगल गया है। चिड़िया ने सागर से अपने बच्चे वापस
मांगे सागर साफ मुकर गया, बोला मेरे पास नही है कोई और ले गया
होगा। एक छोटी सी चिड़िया अथाह सागर का क्या बिगाड़ लेती, पर
वो हार मानने वाली नही थी, उसने तय कर लिया कि वो अपने बच्चे सागर
से ले कर मानेगी। चिड़िया सागर किनारे बैठकर अपनी चोंच मे सागर का पानी भरकर उसे
बाहर मिट्टी मे डालने लगी और प्रण कर लिया कि जब तक सागर उसके बच्चे नही दे देता तब
तक वो सागर को इसी तरह खाली करेगी । चिड़िया के इस करतब पर सब हँसते थे कि एक अदनी सी
चिड़िया भला कैसे सागर का मुकाबला कर सकती है पर चिड़िया ने भी ठान ली थी। जब प्रकृति माँ
ने चिड़िया का साहस और प्रण देखा तो उसने सागर का पानी चिड़िया के किये प्रयास के
अनुपात मे कम करना शुरु कर दिया । धीरे-धीरे समुद्र का पानी कम होने लगा तो सागर को
भय हुआ। उसने चिड़िया से माफी माँगी और उसके बच्चे वापस कर दिये ।
शिक्षा
:- अपने को कम न आंको, जुल्म
करने वाला कितना ही ताकतवर क्यो ना हो जीत सच्चाई की होती है। लगातार परिश्रम और अडिग
प्रण से ही सफलता मिलती है। जिस तरह से चिड़िया की लगनदेखकर प्रकृतिने उसकी सहायता
की उसी तरह आप भी अपने कार्य में लगन से जुट जाइये सहायता ईश्वर करेगा। दुनिया के इस
अथाह सागर में हमारा प्रयास उस चिड़िया की तरह ही है। लेकिन विश्वास है एक दिन सफलता जरुर मिलेगी।
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