"तराना - ए - अल बरकात"
ये चमन मेरा चमन मेरा ये बरकत का चमन,
ये चमन मेरा चमन मेरा ये बरकत का चमन,
इल्मों दानिश की बिखरती हुई निखत का चमन
तेरे ही दम से मिला है हमें जीने का सुराग़,
देने वाले ने तेरे हाथ को बख्शा है फराग
कौम की फ़िक्र से रोशन तेरे सीने का चिराग़,
क्या हसीं फूल रखे हैं तेरी हस्ती का बाग़
तू शराफत का नजाबत का अमानत का गगन,
ये चमन मेरा चमन मेरा ये बरकत का चमन
दरो दीवार से तेरे है अजब सी उल्फत,
तुने दी है हमें माँ - बाप के जैसी शफक्कत
हम को तस्कीन का बाइस हुई तेरी कुरबत,
तेरी अजमत के निगहबान अमीने मिल्लत
तेरी देहलीज़ से चमकी है फ़ज़ीलत की किरन,
ये चमन मेरा चमन मेरा ये बरकत का चमन
कौन सा दिल जो तेरी याद से मामूर नहीं
किस को आग़ोश में रहना तेरी मंजून नहीं
कौन ऐसा जो तेरे साये में मसरूर नहीं
होगा नज़रों से मगर दिल से कभी दूर नहीं
ता अब्द कायमों दायम रहे तेरा जोबन
ये चमन मेरा चमन मेरा ये बरकत का चमन,
डॉ. अहमद मुजतबा सिद्दीकी
kya fikr hai
ReplyDeletemubarak ho
mustafa
hyderabad